तारीख: 8 मार्च 1988 स्थान: मोहशमपुर (पंजाब)
गांव में मंच सजा था। उस पर म्यूजिशियन बैठे थे। मंच के सामने लोगों की भीड़ जमा थी। सब अपने फेवरेट लोक गायक अमर सिंह चमकीला का इंतजार कर रहे थे। मंच से एंकर ने ऐलान किया। दिल थाम के बैठिए आपके पसंदीदा गायक चमकीला मंच पर आ रहे हैं।
चमकीला अपनी पत्नी अमरजोत के साथ मंच के बाईं ओर से चढ़ रहे थे। इसी दौरान कुछ बाइक सवार आए और अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी। गोलीबारी में चमकीला और अमरजोत की मौके पर ही मौत हो गई। फायरिंग का आरोप खालिस्तान समर्थकों पर लगा।
90 के दशक में पंजाब में अमर सिंह चमकीला सबसे लोकप्रिय नाम था। हर कोई उनके गाने और लाइव परफॉर्मेंस सुनना चाहता था। उन पर आरोप था कि वह अश्लील गाने गाते हैं, इस वजह से एक वर्ग उनसे नाराज भी था। चमकीला की हत्या के 36 साल बाद उनके जीवन पर इम्तियाज अली ने फिल्म बनाई है। 'अमर सिंह चमकीला' नाम की यह फिल्म 12 अप्रैल को OTT पर रिलीज होगी।
फिल्म में चमकीला का किरदार पंजाबी सिंगर-एक्टर दिलजीत दोसांझ और उनकी पत्नी का किरदार परिणीति चोपड़ा निभा रही हैं। फिल्म से 4 साल बाद डायरेक्शन में वापसी कर रहे इम्तियाज अली ने फिल्म की मेकिंग और चमकीला के बारे में बात की…
सवाल: अमर सिंह चमकीला, पंजाब का वो सितारा जिसे वहां के लोग तो जानते हैं पर दुनिया नहीं जानती। इस कहानी तक आप कैसे पहुंचे ?
जवाब: मेरे कुछ दोस्तों ने मुझे तकरीबन 15 साल पहले चमकीला के बारे में बताया था। उस वक्त मुझे उनके किरदार, उनके संगीत, उनके लिरिक्स और गानों ने बहुत आकर्षित किया। धीरे-धीरे मुझे यह ख्याल आया कि इन पर फिल्म बनेगी तो बहुत इंट्रेस्टिंग बन सकती है।
इसके बाद मैंने खुद रिसर्च करना शुरू किया। उन लोगों से मिला जो उनकी जिंदगी में थे और उनके आस-पास हुआ करते थे, तो मुझे लगा कि इनकी जिंदगी में कोई ऐसी बात है जो मैं कहना चाहता हूं... फिर मैंने इस फिल्म पर काम शुरू किया।
सवाल: इस फिल्म के गानों को आपने लाइव शूट किया है। वो कैसे अलग एक्सपीरिएंस रहा?
जवाब: शूटिंग के दौरान हमने गाने लाइव शूट किए हैं। ठीक वैसे ही जैसे पूरी फिल्म शूट की जाती है। यह बतौर डायरेक्टर मेरे लिए इंट्रेस्टिंग था कि आप बोल रहे हो और फिर गा रहे हो। मेरे मन में यह बात थी कि अगर आप सिंगर की लाइफ पर फिल्म बना रहे हैं तो उनकी जिंदगी में ऐसी कई सिचुएशन आती हैं जब वो रिहर्सल करते या कंपोज करते हैं तब वो गा भी रहे होते हैं और बात भी करते हैं।
लाइव शोज जब लोग करते हैं तो उसमें बोलना और गाना साथ होता है। हमने इस फिल्म के लिए कई लाइव शो सीक्वेंस भी शूट किए। मैं हमेशा ऐसे एक्टर की तलाश में था जो गायक भी हो। मेरे ख्याल से यह ऑडियंस के लिए भी काफी इंट्रेस्टिंग रहेगा।
जब हम बात करते हैं तो हमारी आवाज होती है पर जब एक एक्टर गाता है तो रफी साहब, किशोर कुमार और अरिजीत की आवाज आ जाती है तो अलग लगता है। ऐसे में पॉसिबल है कि थोड़ा डिस्कनेक्ट हो जाए। तो एक गायक की फिल्म है और उसमें एक्टर ही गा रहा है तो उसका मजा थोड़ा ज्यादा होगा।
सवाल: आज जहां बाकी डायरेक्टर्स बड़े-बड़े सेट क्रिएट करना प्रिफर करते हैं वहां आपने इस फिल्म को रियल लोकेशन पर क्यों शूट किया?
जवाब: मुझे लगता है कि जिस तरह से सत्य का अपना एक पावर होता है उसी तरह एक रियल लोकेशन की भी रियल वाइब होती है जिसे आप अपनी फिल्म में कैप्चर कर सकते हैं। अगर इमैजिन करने से बेहतर आपको वो रियल लोकेशन ही मिल जाए तो बुराई क्या है ?
इससे कहानी ज्यादा इंट्रेस्टिंग बनती है और मैं पर्सनली हमेशा रियल लोकेशन शूट ही प्रिफर करता हूं।
‘चमकीला’ मेरी पहली बायोपिक है, जो किसी की जिंदगी पर आधारित है। मेरी ख्वाहिश थी कि मैं उन जगहों पर जाऊं जहां पर वो किस्से घटे हैं जो हम फिल्म में दिखा रहे हैं, इसलिए हम पंजाब आए हैं।
सवाल: क्या यह फिल्म चमकीला के दौर यानी 80 के दशक के पंजाब के सामाजिक और राजनीतिक पहलुओं को भी पेश करती है?
जवाब: यह एक पर्सनल फिल्म है। इसको कहने का जो स्टाइल है वो भी पर्सनल है। इसमें हम कोई पॉलिटिकल या सोशियो पॉलिटिकल स्टेटमेंट नहीं दे रहे हैं। मगर मैंने इसको पॉलिटिकली और सोशियली ऑथेंटिक बनाने की कोशिश की है, ताकि यह कहानी ज्यादा इंट्रेस्टिंग हो सके।
जो संदर्भ है जिसमें यह कहानी कही जा रही है। जो उस समय का सच है वो बहुत जरूरी था इस फिल्म के लिए। जैसा कि आपने कहा कि यह फिल्म 80 के दशक का पंजाब दिखाती है। वो वक्त पंजाब के लिए, पूरे हिंदुस्तान के लिए बहुत ही ड्रामेटिक फेज में था। उस समय ही चमकीला अपने शिखर पर था। सारे लोग उसके गाने सुन रहे थे।
इस हाई और लो को ही हमने इस फिल्म में साथ रखने की कोशिश की है। इसमें पॉलिटिकल स्टेटमेंट कोई नहीं है पर कहानी के बैकग्राउंड में आपको वो पॉलिटिक्स जरूर नजर आएगी। बिना किसी जजमेंट के उस वक्त की सोशियो पॉलिटिकल और कल्चरल सिचुएशन की झलक जरूर मिलेगी।
सवाल: आपके मुताबिक एक लोक गायक कैसे लोगों के दिलों में जगह बनाता है?
जवाब: चमकीला जिन लोगों के लिए गाने बनाते थे उनके पास एंटरटेनमेंट का कोई साधन नहीं था। वो अखाड़े (लाइव शो) देखने आते थे क्योंकि ना उनके पास रेडियो था, न टीवी और ना ही पैसे थे कि वो किसी और तरीके से मनोरंजन कर सकें।
सबसे गरीब और पिछड़े जो लोग थे वही चमकीला के गानों से एंटरटेन होते थे। लोक गायक की यही पहचान होती है कि लोग उसे भले ही शक्ल से ना पहचानें, पर वो उनके दिलों में बसता है।
चमकीला, ग्रास रूट लेवल पर इतने पॉपुलर इसलिए थे क्योंकि वे लोगों की भाषा में बात करते थे। उनके बारे में बोलते थे और इसी वजह से लोग चमकीला को अपना मानते थे। वे ग्रास रूट लेवल पर इतना पॉपुलर थे कि उनको एल्विस ऑफ पंजाब कहा जाता है।
कहा जाता है कि उनके जितने रिकॉर्ड्स आज तक किसी भी पंजाबी सिंगर के नहीं बिके हैं। पंजाब के कई सिंगर्स आज भी अपने शोज की शुरुआत चमकीला के गाने से करते हैं।
सवाल: आपने अभी एक सीन शूट किया जिसमें चमकीला कोई और गाना गाना चाहते हैं और भीड़ उनसे किसी और तरह के गानों की फरमाइश कर रही है। तो एक आर्टिस्ट की अपनी पसंद कि वो क्या गाना चाहता है। वो सोशियो पॉलिटिकली करेक्ट होना चाहता है पर जनता की डिमांड के आगे नहीं हो पाता। ये जो कॉन्फ्लिक्ट है चमकीला की जिंदगी में वो कैसा है?
जवाब: चमकीला की जिंदगी में यह कॉन्फ्लिक्ट ऐसा था कि इस कॉन्फ्लिक्ट ने आखिरकार उनकी जान ले ली। चमकीला को मालूम था कि अगर वो इस तरह के गाने गाते रहेंगे तो शायद उनकी जान जा सकती है। उनको चेतावनियां दी गई थीं।
मगर चमकीला की एक फितरत थी कि वो जनता को कभी निराश नहीं कर सकते थे। आखिरकार उन्होंने जनता की डिमांड के आगे वैसे गाने फिर से गाने शुरू कर दिए जो उन्होंने छोड़ दिए थे।
उनके गाने बहुत हिट थे, पर एक वक्त पर उन्होंने तय कर लिया था कि वे ऐसे गाने नहीं गाएंगे और उन्होंने धार्मिक गाने बनाने शुरू कर दिए थे। उनके धार्मिक गाने उनके दूसरे गानों से ज्यादा बड़े हिट हो गए थे। वे गाने आज भी गुरुद्वारों के फंक्शन में बजते हैं।
ये गाने भले ही पॉपुलर हैं, पर जनता तो जनता है, उन्हें दूसरे भी गाने सुनने थे। तो अगर चमकीला को सेफ प्ले करना होता तो वे दोबारा वैसे गाने फिर से नहीं गाते जिनके चलते उनकी जान गई।
सवाल: आपका मूवी बनाने का प्रोसेस क्या है?
जवाब: जब फिल्म बननी शुरू होती है तो मुझे खुद पता नहीं होता कि वो बननी शुरू हो चुकी है। एक वक्त आता है जब वो कहानी का रूप ले लेती है। आप उसे सबको सुनाना शुरू कर देते हो। ऑटो में जा रहे हो तो ऑटोवाले को ही कहानी सुनाने लगते हो।
धीरे-धीरे एक समय आता है जब कहानी दिल और दिमाग में बीमारी की तरह फैल जाती है तब जाकर आप उसकी राइटिंग शुरू कर देते हैं। फिर उस कहानी को स्क्रिप्ट का रूप दिया जाता है और अंत में पता चलता है कि आप उस कहानी पर फिल्म बना रहे हैं।
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